बुंदेलखण्ड के वैभवशाली अतीत का प्रतिनिधित्व यदि एक नगरी मात्र को करना हो तो वह खजुराहो ही है। चंदेल कालीन अमर शिल्प कला की इस प्रतीक नगरी में हम वह सव कुछ पाते है जो कि न सिर्फ बुदेलखण्ड वल्कि एक भारतीय के रुप में भी हमें विश्व पटल पर गौरवान्वित करता है। लोक श्रुति के अनुसार यहाँ के सभी मन्दिरों का निर्माण एक रात्रि मे ही किया गया था । ग्यारहवीं शताब्दी से प्रारम्भ हुये मन्दिर निर्माण का कालक्रम चौदहवीं शताब्दी तक चला मतगेंश्वर महादेव के रुप में यहां शिव मन्दिर विराजमान हैं। यहां कि एक और प्रमुख विशेषता है मन्दिर की दीवारो में उत्कीर्ण शांत भाव लिये मैथुनी मूर्तियां हैं।
खजुराहो के नामकरण का प्रमुख कारण यहाँ खजूर वृक्षों की अधिकता हो सकता है। इसे खजूरों के उधान के लिये भी प्रसिद्धी प्राप्त थी। खजुराहो में पचासी मन्दिर होने का उल्लेख मिलता है। किंतु अब बाइस मन्दिर ही उपलब्ध हैं। खजुराहो की मैथुनी मूर्तियों उत्कीर्ण किये जाने के पीछे काम की समाज मे सामान्य मनुष्य वृत्ति के रुप मे स्वीकार्यता करवाना था । बौद्ध प्रभाव से सन्यासी हो रहे युवक – युवती को पुनः गृहस्थ आश्रम मे प्रतिष्ठित करना समय की आवश्यकता थी । अन्य मत के अनुसार वाममार्गी साधको का प्रभाव राज सत्ता पर था जो कि भोग को मोक्ष की साधना का उपाय मानते थे। खजुराहो के प्रमुख मनिदरों में कंदरिया महादेव मंदिर, मतगेश्वर मदिर, जगदवीं मंदिरं लक्ष्मण मंदिर,दूल्हा देव मंदिर, चित्रगुप्त मदिर आदि शामिल है। खजुराहो .न सिर्फ हिन्दू स्थापत्य कला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है वल्कि यहाँ के जैन मन्दिर भी अपनी श्रेष्ठ कला का प्रमाण हैं। इनमें पार्श्वनाथ मंदिर एवं शांतिनाथ मंदिर प्रमुख है। इसके अतिरिक्त यहाँ के संग्रहालय में भी दुर्लभ संग्रह हैं । खजुराहो आज एक लोकप्रिय अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन केन्द के रुप में संपूर्ण विश्व में मान्यता प्राप्त कर रहा है। खजुराहो अंर्तराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल एवं नृत्य महोत्सव खजुराहो यहाँ के प्रमुख आयोजन हैं।