महोबा

चंदेल वंश की राजधानी वीर भूमि महोबा का बुंदेलखंड के इतहास में महत्वपूर्ण स्थान है। महोबा को अपनी उत्सवधर्मिता के कारण महोत्सव  नगरी के नाम से जाना जाता था। जो कि कालांतर में अपभ्रंश हो कर महोबा नाम हुआ ।

महोबा नगर स्थित माँ बड़ी चंद्रिका मंदिर को पौराणिक कालीन शक्ति पीठ का दर्जा प्राप्त है। महिषासुर का मर्दन करते समय से हास्य से उसे विश्मय मुद्रा में देखते हुए यह दुर्लभ प्रतिमा है । इसके निकट स्थित छोटी  चन्द्रिका मंदिर एवं कठेश्वर महादेव मदिर दर्शनीय स्थल हैं । यहाँ प्राचीन जैन प्रतिमा एवं गुफा पहाड़ी पर चित्रित है जो की इस नगर में प्राचीन जैन साधना क्षेत्र होने के प्रमाण हैं । महोबा के साथ आल्हा उदल जैसे वीरों का  नाम जुड़ा हुआ है । यह राजा परमर्दि देव के सेनापति थे। इसके सात ही यहाँ पर नाथ संप्रदाय के महान गुरु श्री  गोरक्षनाथ जी के यहाँ तप करने के भी प्रमाण प्राप्त होते हैं। ऐतहासिक कजली  युद्ध के अंत काल में जब आल्हा और पृथ्वीराज आमने सामने युद्ध कर रहे थे तभी आल्हा के पृथ्वी राज पर प्राणघातक वार करने को उद्धत होने पर गुरु गोरक्ष नाथ जी के प्रकट हो कर उनको ले जाने का विवरण जगनिक कृत आल्ह खंड में मिलता है । इसके अतिरिक्त गोरक्ष गिरी पर्वत क्षेत्र  ( गुखार पहाड़ ) के निकट तांडव नृत्य करते हुए गजासुर का वध करते हुए विशाल शिव प्रतिमा   चट्टान पर उभरी हुयी है। महोबा से आठ कि.मी. दूर स्थित सूर्य मंदिर सूर्य सिद्धांत पर आधारित चंदेल कालीन मंदिर है। जिसकी तुलना कोणार्क के सूर्य मंदिर से की जाती है। न सिर्फ प्राचीन काल में वल्कि आधुनिक काल में भी दो भव्य प्रतिमा जिनमे एक शिव जी की तथा एक हनुमान जी की का निर्माण विगत वर्षो में नगर में हुआ है । जो कि इस नगर के सतत स्थापत्य प्रेम के अनूठे उदहारण हैं।