हमीरपुर

प्राचीन काल में जल मार्ग से व्यापार केन्द्र में हमीरपुर नगर का प्रमुख स्थान है । वेतवा और यमुना के मध्य स्थित यह नगर व्यापार एवं आस्था के प्रमुख केन्द्र मे एक रहा । एतिहासिक रूप से सती अनुसुइया के पिता एवं श्रीं सूक्त के द्रष्टा ऋषि कर्दम की तपस्थली हमीरपुर जिले के कदौरा में जहाँ पूर्व काल में कर्दही वृक्ष का जंगल था इस स्थान पर थी। इनकी देवहूति से उत्पन्न नव कन्याओं एवं ऋषि पतियो का भारतीय वैदिक साहित्य सृजन मे महत्वपूर्ण योगदान है। चेदि राजवंश, एवं वाकाटक शासन के प्रभुत्व मे भी यह क्षेत्र रहा । एतिहासिक रुप से हमीरा देव एक कलचुरी राजपूत के द्वारा वर्तमान हमीरपुर नगर की स्थापना का उल्लेख एवं उनके किले के होने का प्रमाण प्राप्त होता है। 1823 ईस्वी मे हमीरपुर को एक स्वतंत्र जिला घोषित किया गया था। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मे 13 जून 1857 को यहाँ विद्रोह की प्रथम चिंगारी राजकीय कोषागार से प्रज्जवलित हुयी थी । 1 जुलाई 1857 से 24 मई 1857 तक यह इलाका अंग्रेजो की आधीनता से मुक्त रहा। 1937 के आस पास यहां स्वातंत्र्य प्रेरणा देने पं जवाहर लाल नेहरू एवं मौलाना अबुल कलाम का आगमन भी हुआ । 1973 में स्वतंत्रता की रजत जयंती में स्वतंत्रता संघर्ष में जिले के योगदान को ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया गया । हमीरपुर जिले में स्वामी ब्रह्मानंद, दीवान शत्रुघ्न सिंह प्रमुख व्यक्तित्व हुये । हमीरपुर मुख्यालय में कल्प वृक्ष का पेड़ लगभग 1ooo वर्ष प्राचीन है।