जालौन

जालौन जिला बुंदेलखंड भू भाग में स्थित है । इसका प्रशासनिक मुख्यालय उरई में स्थित है । एतिहासिक रुप से यह एक समृद्ध विरासत रखता है । जालौन का नामकरण ऋषि जलावन के नाम पर पडा हुआ माता जाता। स्वातंत्र्य काल में भी इस जिले के लोगो र्ने अभूतपूर्व योगदान दिया  1857 के गदर मे यहा के वीर क्रांतिकारी झासी तक पहुंचे थे। पौराणिक काल मे यह क्षेत्र राजा ययाति के शासन अंर्तगत था । महाभारत काल मे चेदि कंश शासक शिशुपल का शासन था । श्री कृष्ण जी के द्वारा उसके वधोपरांत उसके पुत्र ने पांडय पक्ष से युद्व में भाग लिया । इसके पश्चात इस क्षेत्र में महापद्म नंद का शासन चला । इस वंश के शासक घनानंद को पराजित कर चंद्रगुप्त मौर्य ने इस क्षेत्र को अपने अधिकार मे लिया । तत्पश्चात प्रमुख रुप से पुष्यमित्र शुंग के शासन काल मे यह क्षेत्र विदिशा प्रान्त के अंतर्गत आता था । मौर्य वशोंपरांत गुप्त वंश ने यहाँ शासन किया । फिर हूण राजा तोरमाण आया ।  हूण शासक मिहिर कुल को हराकर यशोधर्मन ने हिमालय से सुदूर दक्षिण तक राज्य स्थापित किया । तत्पश्चात् हर्षवर्धन ने इस क्षेत्र मे  शासन किया । 8 वीं शताब्दी में प्रतिहारों ने शासन किया जिसपे प्रतापी राजा मिहिर भोज हुआ । 

चन्देल वंश  के शासन काल मे यशोवर्मन ने प्रतिहार राजा से युद्ध मे में सहयोग के बदले चित्रकूट का क्षेत्र एवं कालिंजर  का किला उपहार में प्राप्त कर बुन्देलखण्ड के क्षेत्र मे चन्देल वंश सर्वाधिक शक्तिशाली हो गये। इस काल का महत्वपूर्ण घटनाक्रम चन्देल शासक परिमर्दिदेव का उरई के शासक माहिल की बहत मल्हा से माहिल की इच्छा के विरुद्ध विवाह है । इसके प्रश्चात राजा माहिल द्वारा चली गयी कटनीतिक चालों का वर्णन आल्हा खण्ड काव्य में विस्तृत वर्णन है । आज भी यह बुन्देलखण्ड के लोक मानस में यथावत है। इसके पश्चात यह क्षेत्र दिल्ली सल्तनत एवं मुगल शासकों द्वारा शासित हुआ था। मुगल काल में अकबर के नौरत्न में से एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बीरबल जिनका मूल नाम महेशदास था जालौन जिले के कालपी के निवासी थे । अकबर वीरवल के किस्से भारतीय लोक साहित्य में मशहूर है ।