धर्म / मेला

ग्रह लक्षण 

🕉️ सनातन संस्कृति 🕉️

आईए जानते हैं कि सनातन परंपरा के मुताबिक पूजा पाठ में काम आने वाले इन 27 शब्दों का अर्थ➖:

1. पंचोपचार– गन्ध , पुष्प , धूप , दीप तथा नैवैध्य द्वारा पूजन करने को ‘पंचोपचार’ कहते हैं..।

2. पंचामृत– दूध , दही , घृत , मधु { शहद ] तथा शक्कर इनके मिश्रण को ‘पंचामृत’ कहते हैं..।

3. पंचगव्य– गाय के दूध , घृत , मूत्र तथा गोबर इन्हें सम्मिलित रूप में ‘पंचगव्य’ कहते हैं..।

4. षोडशोपचार– आवाहन् , आसन , पाध्य , अर्घ्य , आचमन , स्नान , वस्त्र, अलंकार , सुगंध , पुष्प , धूप , दीप ,
नैवैध्य , ,अक्षत , ताम्बुल तथा दक्षिणा इन सबके द्वारा पूजन करने की विधि को ‘षोडशोपचार’ कहते हैं..।

5. दशोपचार– पाध्य , अर्घ्य , आचमनीय , मधुपक्र , आचमन , गंध , पुष्प , धूप , दीप तथा नैवैध्य द्वारा पूजन करने की विधि को ‘दशोपचार’ कहते हैं..।

6. त्रिधातु– सोना , चांदी और तांबा..कुछ आचार्य सोना ,चांदी, लोहा इनके मिश्रण को भी ‘त्रिधातु’ कहते हैं..।

7. पंचधातु– सोना , चांदी , लोहा, तांबा और जस्ता..।

8. अष्टधातु– सोना , चांदी , लोहा , तांबा , जस्ता, रांगा, कांसा और पारा..।

9. नैवैध्य– खीर , मिष्ठान आदि मीठी वस्तुएं, जिन्हें प्रसाद के रुप में अर्पित किया जाता है..।

10. नवग्रह– सूर्य , चन्द्र , मंगल , बुध, गुरु , शुक्र , शनि , राहु और केतु..।

11. नवरत्न– माणिक्य , मोती , मूंगा , पन्ना , पुखराज , हीरा , नीलम , गोमेद और वैदूर्य..।

12. अष्टगंध– अगर , तगर , गोरोचन, केसर , कस्तूरी, श्वेत चन्दन, लाल चन्दन और सिन्दूर(देवताओं की पूजा के लिए), अगर , लाल चन्दन , हल्दी , कुमकुम ,गोरोचन , जटामासी , शिलाजीत और कपूर(देवी पूजन के लिए)..।

13. गंधत्रयी– सिन्दूर , हल्दी , कुमकुम..।

14. पञ्चांग– किसी वनस्पति के पुष्प , पत्र , फल , छाल और जड़..।

15. दशांश– दसवां भाग..।

16. सम्पुट– मिट्टी के दो सकोरों को एक-दुसरे के मुंह से मिला कर बंद करना..।

17. भोजपत्र– एक वृक्ष की छाल, यंत्र बनाने के लिए भोजपत्र का ऐसा टुकड़ा लेना चाहिए,जो कटा-फटा नहीं हो..।

18.यंत्र या मन्त्र धारण– किसी भी यंत्र या मन्त्र को स्त्री पुरुष दोनों ही कंठ में धारण कर सकते हैं ,परन्तु यदि भुजा में धारण करना चाहें तो पुरुष को अपनी दायीं भुजा में और स्त्री को बायीं भुजा में धारण करना चाहिए..।

19. ताबीज– यह तांबे के बने हुए बाजार में बहुतायत से मिलते हैं | ये गोल तथा चपटे दो आकारों में मिलते हैं. विशेष कार्यों के लिए सोना , चांदी , त्रिधातु तथा अष्टधातु आदि के ताबीज बनवाये जाते हैं..।

20. मुद्राएँ– हाथों की अँगुलियों को किसी विशेष स्तिथि में लेने कि क्रिया को ‘मुद्रा’ कहा जाता है. मुद्राएँ अनेक प्रकार की होती हैं..।

21. स्नान– यह दो प्रकार का होता है- बाह्य तथा आतंरिक, बाह्य स्नान जल से तथा आन्तरिक स्नान जप द्वारा होता है..।

22. तर्पण– नदी, सरोवर, आदि के जल में घुटनों तक पानी में खड़े होकर, हाथ की अंजुली द्वारा जल गिराने की क्रिया को ‘तर्पण’कहा जाता है..जहाँ नदी या सरोवर आदि न हो ,वहां किसी पात्र में पानी भरकर भी ‘तर्पण’ की क्रिया संपन्न कर ली जाती है..।

23. आचमन– हाथ में जल लेकर उसे अपने मुंह में डालने की क्रिया को आचमन कहते हैं..।

24. करन्यास– अंगूठा , अंगुली , करतल तथा करपृष्ठ पर मन्त्र जपने को ‘करन्यास’कहा जाता है..।

25. हृदयान्यास– ह्रदय आदि अंगों को स्पर्श करते हुए मंत्रोच्चारण को ‘हृदयान्यास’ कहते हैं..।

26. अंगन्यास – ह्रदय , शिर , शिखा , कवच , नेत्र एवं करतल, इन 6 अंगों को स्पर्श करके मन्त्र का जप करने की क्रिया को ‘अंगन्यास’ कहते हैं..।

27. अर्घ्य – शंख या अंजलि आदि द्वारा जल छोड़ने को अर्घ्य देना कहा जाता है…।
घड़ा या कलश में पानी भरकर रखने को अर्घ्य-स्थापन कहते हैं…।
अर्घ्य पात्र में दूध , तिल , कुशा के टुकड़े , सरसों , जौ , पुष्प , चावल एवं कुमकुम डाला जाता है…।।

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