चित्रकूट

चित्रकूटवनस्थं च कथित स्वर्गतिर्गुरो: लक्ष्म्या निमन्त्रयां चके तमनुच्छिष्ट संपदा’।

‘धारास्वनोद्गारिदरी मुखाऽसौ श्रृंगाग्रलग्नाम्बुदवप्रपंक:, बध्नाति मे बंधुरगात्रि चक्षुदृप्त: ककुद्मानिवचित्रकूट:’।

रघुवंश, कालिदास

भारतीय धर्माकाश में जो स्थान भगवान श्री राम का है वही रामायण कालीन धर्मस्थलो में चित्रकूट का है । आदि काल से ही चित्रकूट जिला तपस्वियों की साधना स्पली रहा है । इसके साथ ही मानिकपुर के निकट सरहट में आदिमानव की चित्रकारी के साक्ष्य इस स्थली के प्राचीन जीवतंता को पुष्ट करती है। चित्रकूट शब्द भावार्थ संस्कृत भाषानुसार सुंदर दृष्य होता है । भगवान राम ने यहाँ अपने वनवास काल का सर्वाधिक समय 11 वर्ष व्यतीत किया था । भगवान राम से संबधित स्थल यहां पर विखरे पड़े हैं । इनमें राम घाट सती अनुसुइया आश्रम, कामतानाथ पचंकोशी परिक्रमा,हनुमान धारा,सीता रसोई जानकी कुन्ड,गुप्त गोदावरी भरत कूपआदि प्रमुख है। महाभारत, श्रीमदभागवत, श्रीं ललितविस्तर आदि मे चित्रकूट का उल्लेख है । चित्रकूट के एक ग्राम राजापुर मे श्रीराम चरित मानस की पांडुलिपि रखी हुयी है।

आधुनिक काल में चित्रकूट को 1997 में छत्रपत्रि शाहू जी महाराज नामक जिला बनाया गया । कितुं जन आकांक्षा को देखते हुए 1998 में पुनः इसका नाम चित्रकूट रख दिया गया। 1978 में स्थापित सद्गुरु सेवा संघ ट्रस्ट द्वारा जानकी कुण्ड नेत्र चिकित्सालय द्वारा सम्पूर्ण बुदेंलखण्ड के जन मानस की सेवा का अप्रतिम मानक स्थापित किया गया है । इसके साथ ही श्री राम भद्राचार्य जी द्वारा स्थापित सन 2001 में श्रीं रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविधालय अप्रतिम है । यह विकलांग शिक्षा के क्षेत्र में भारत ही विश्व में प्रथम स्थान रखता है

वर्तमान

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