गढ कुड़ार (Garh Kudar)

गढकुडार का किला बुंदेलखण्ड के इतिहास में एक प्रमुख स्थान रखता है। अपनी मार्ग की भूल भुलैया के लिये प्रसिद्ध गढ कुडार मध्य राजपूत कालीन स्थापत्य का बेजोड़ नमूना है। गढ कुडार का किला टीकमगढ जिले मे स्थित हैं । इसे राजा खेत सिह खंगार की राजधानी के रुप में जाना जाता है। लगभग ११८० ई० के आसपास से इसका उल्लेख प्राप्त होता है। सोहन पाल , सहजेन्द्र मेंदिनी पाल आदि राजाओ ने इसे अपनी राजधानी बनाये रखा । राजा रुद्र प्रताप सिंह ने स्थान परिवर्तन करते हुये अपनी राजधानी ओरछा को स्थानातंरित कर दिया ।

                              गढ कुडार का किला पांच मंजिला निर्माण है। जिसमे भूतल के उपर एवं नीचे दोनों तरफ इस तरह से किया गया है कि नीचे तक जाना बिलकुल अजनबी व्यक्ति के लिये असंभव जैसा था। दीवान ए आम , दीवान ए खास रानी का का महल, नरसिंह मंदिर आदि खास स्थानं है । किले के बीच का आंगन एवं सुव्यवस्थित गृह संरचना इसे आर्कषक रुप प्रदान करता है । गढ कुडार का सामरिक स्वरूप अत्यंत सुरक्षित स्वरूप प्रदान करता है । इस दुर्ग की प्रमुख विशेषता यह है कि यह लगभग १२ कि. मी. से स्पष्ट दिखायी देता है Iकितुं नजदीक पहुंचने पर दिखायी पड़ना बन्द हो जाता है । और रास्तों की भूल भुलैया पथिक को दूर भटकाव पैदा कर देती है। गढ़ कुंडार का दुर्ग एक लवें समय तक बुन्देला राजनीति का केन्द्र रहा ।

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