दतिया

माँ पीताम्बरा की स्थली का बुंदेलखंड में एक विशेष स्थान है। वतिया की स्थापना दंतवक्र द्वारा की गयी थी। जिन्हें सहदेव ने पराजित किया था। दतिया को देतवक्त की राजधानी कहा जाता था । पुनः इस जिले का इतिहास में उल्लेख बदेलखण्ड शासक वीर सिंह जू देव के समय से प्राप्त होता है। इसके पश्चात राओ भगवान राओ को यह उत्तराधिकार में प्राप्त हुआ । तत्पश्चात् बेसिन की संधि से बुंदेलखण्ड का यह क्षेत्र अंग्रेजों के अधिकार में आ गया । दतिया का स्थापत्य भी बेजोड़ है यहां स्थित सोनगिरि मे जैन मन्दिर स्थापित है जिनमें भगवान चन्द्रप्रभु को समर्पित मन्दिर प्रमुख है। अन्य जैन मंदिरों मे भगवान शीतल नाथ एवं भगवान पार्श्वनाथ की सुंदर प्रतिमा हैं । इसके अतिरिक्त गोविंद महल ( सतखंडा महल) भी एक महत्वपूर्ण मध्यकालीन स्थापत्य का नमूना है। बुदेली स्थापत्य शैली में निर्मित राजगढ़ महल का निर्माण शत्रुजीत सिंह द्वारा बनाया गया था।

दतिया का एतिहासिक के साथ धार्मिक महत्व भी अद्धितीय है । माँ पीतांबरा शक्ति पीठ राष्ट्रीय स्तर पर माँ के भक्तो की आस्था का केन्द्र है। राजनीति के क्षेत्र में सफलता के इच्छुक भक्तो की यह तपस्थली है। इसके अतिरिक्त माँ धूमावती मन्दिर भी अपने आप में अदभुत है। यहाँ स्थित वनखण्डेश्वर महादेव को महाभारत कालीन चिरंजीवी अश्वत्थामा से संबधित माना जाता है। एसा कहा जाता है कि चीन आक्रमण के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के निवेदन पर ५१ कुंडीय यज्ञ का आयोजन किया गया था । जिसके पूर्णाहुति दिवस पर युद्ध के समापन का संदेश आ गया था ।