लाला हरदौल (Lala Hardol)

बुंदेली जन स्मृति में लाला हरदौल का एक विशिष्ठ स्थान है।सदियों के बीत जाने के बाद भी रिश्तो की पवित्रता के नाम पर आज भी हरदौल की दुहाई दी जाती है। १६६४ के लगभग ओरछा राजा वीर सिंह जू देव के यहाँ दूसरे पुत्र के रूप में इनका जन्म हुआ था। इनको जन नायक मने जाने का कारन इनका स्वयं का बलिदान था।जो कि इनके बड़े भाई के कहने पर इनकी भाभी द्वारा इन्हे भोजन में विष दिया गया था। यद्यपि इसके पीछे के कारणों के विषय में इतिहासकरों में मतभेद है।  एक किन्तु, बात निर्विवाद है कि अपनी मृत्यु के समय तक राजा हरदौल अपनी जनता में लोकप्रिय न्यायकारी वीर सशक्त शासक कि छवि बना चुके थे ।

अतः इससे परेशान हो कर षड़यंत्र के तहत जुझार सिंह ने रानी चम्पावती को हरदौल को विष देने की विवश किया ।यद्यपि रानी की आँख में आंसू आ जाने से भेद उजागर हो गया । राजा हरदौल ने फिर भी मान की रक्षा हेतु सहर्ष विष पान कर लिया ।
इनके जीवन से एक और चमत्कार की कथा जुडी हुयी है । ऐसा कहा जाता है की जान राजा जुझार सिंह की बहन कुंजावती जब अपने पुत्र के विवाह के निमंत्रण में भात मांगने आयी तो उसने ताना देते हुए मृत हरदौल से भात मांग लेने को कहा। इस पर दुखित रानी रोते हुए हरदौल की समाधी पर जा पहुंची और निमंत्रण दिया। जनविश्वास है कि लाला हरदौल भांजे के विवाह में भात ले कर पहुंचे और प्रत्यक्ष हो कर अपनी उपस्थितिका प्रमाण दिया । इस घटना के उपरांत लाला हरदौल को बुंदेलखड के लोकदेवता के रूप में प्रतितस्था हो गयी। आज भी लोग विवाह के अवसर में उन्हें निमंत्रित करने जाने की परम्परा मानते है।

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