आल्हा और ऊदल का नाम न सिर्फ बुन्देलखण्ड वल्कि संपूर्ण भारत में वीरता का पर्यायवाची माना जाता है। चंदेल कालीन भारतीय इतिहास राजा परमर्दि देव चन्देल के सेनापति थे। लोकमत में आल्हा को युधिष्ठिर और अदल को भीम का पुर्नजन्म माना जाता है। आल्हा और उदल के द्वारा 52 युद्ध जीतने का उल्लेख आल्हा खंड में मिलता हैं। आल्हा और ऊदल के शौर्य का प्रमुख स्तम्भ उनका पृथ्वीराज से हुआ युद्ध है। पृथ्वीराज चौहान उस समय के सबसे प्रतापी सम्राटों मे एक था। जिसके बाहुबल एवं सैन्यबल की तुलना भारत के किसी अन्य राजा से करना संभव न था| परमाल के पुत्र बृह्मजीत के द्वारा पृथ्वीराज की पुत्री वेला से विवाह किये जाने से क्रुद्ध प्रथ्वीराज ने महोबा में आक्रमण कर दिया। यह युद्ध बुदेलखण्ड के इतिहास मे कजली की लड़ाई के नाम से जाना जाता है । कहते हैं कि महोबा में घिरे होने के कारण कजली न खुट पाने से आज भी स्थानीय निवासी रक्षाबंधन का त्यौहार दूसरे दिन मनाते हें। इस मुद्ध मे भयंकर रक्त पात हुआ । यहां इस युद्ध का भारतीय इतिहास के सन्दर्भ मे एक वडे अप्रत्यक्ष प्रभाव ळे लिये रेखाकिंत किया जाता है। इसमें दोनों पक्षों के सरदार वीरगति को प्राप्त हुये जिससे हुये नुकसान की वजह से पृथ्वीराज का मो गोरी से हुये युद्ध मे पराजित होना पडा। कजली के इस युद्ध में उदल अत्याधिक वीरता से युद्ध करते हुये वीर गति को प्राप्त हुये। इससे क्रोधित हो कर आल्हा ने भयंकर युद्ध किया और पृथ्वीराज की सेना को बहुत नुकसान पहुचाया । कहते हैं कि इस लड़ाई मे पृथ्वीराज और आल्हा आमने सामने आ गये थे । आल्ह जब पृथ्वीराज पर प्राण घातक वार करने ही वाले थे तभी गुरु गोरक्षनाथ ने उपस्थित हो कर इनहे रुकने का आदेश दे कर अपने साथ ले गये । पृथ्वीराज भी अपनी सेना सहित सीमा से ही वापिस लौट गया । आज भी आल्हा के अमर होने की जन मान्यता है जिसका प्रमाण कुलदेवी मैहर के शारदा मंदिर मे प्रतिदिन ताजे पुष्प अर्पित प्राप्त होने का प्रमाण है । आज भी इन वीर लोकनायकों की वीरगाथां आल्हा खडं काव्य को न सिर्फ भारतीय सेना वल्कि यूरोपीय सेनाओं में उत्साहित करने वाले साहित्य के रूप में स्वीकार किया जाता है