चन्देल वंश राजा परमर्दि देव और दिल्ली सम्राट पृथ्वीराज चौहान के मध्य हुये युद्ध के कारण कजली का विसर्जन एक दिन रुका रहा । दूसरे दिन भुजरियां विसर्जित हुयी । इस घटना को विजय के रुप मे स्मरण करके मनाया जाता है। सावन में लगी वारिश की झड़ी इस आयोजन का उत्साह दोगुना कर देती है । कजरी महोत्सव में प्रथम दिन एक विशाल जुलूस जिसमें इस एतिहासिक घटना से संवधिंत झाकियां होती हैं निकाला जाता है। इसका संचालन नगर पालिका द्वारा होता है। इस जुलूस का समापन कीरत सागर तालाब (परमर्दि देव – पृथ्वीराज का युद्ध क्षेत्र ) के किनारे पर होता है। जहां भुजरियां विर्सजित की जाती है। सिर्फ नगर ही नहीं वल्कि निकटवर्ती जिलों के लोग भी भारी संख्या में इस आयोजन में सम्मलित होते हैं। वीर आल्हा उदल का चरित्र गायन आल्हा खंड पूरे बुंदेलखंड ही नहीं संपूर्ण भारत में लोक कात्य के रुप में मान्यता रखता है। सात दिवसीय इस मेले मे दूर – दूर से दुकानदार आते हैं
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