झांसी के इतिहास का प्रारंभ बुंदेलखंड के प्रमुख एतिहासिक राजवंश चंदेल वंश के शासन काल से इसके उद्भव उल्लेख मिलता है। चंदेल कल मे इसका नाम वलवतं नगर था।यधपि कालान्तर मे समय चक्र की गति के अनुसार इसका उत्थान पतन होता रहा । किंतु, वीर सिंह ओरछा नरेश के शासन काल मे इसने अपनी प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त कर लिया । राजा छत्रसाल के समय भी यह क्षेत्र सम्पन्न था । उनके द्वारा अपने राज्य के इस भाग को पेशवा को सौंपा गया था। इसके पश्चात यहाँ क्रमशः नरोशंकर, माधव गोविन्द काकर्दी, बाबू लाल कन्हाई विश्वास राव लक्ष्मण, राघुनाथ राव नेवलकर, शिवराव हरि , रामचन्द्र राव, रघुनाथ राव तृतीय झांसी के सूबेदार रहे । इसके पश्चात झांसी का सूबेदार गंगाधर राव को बनाया गया । इस समय तक भारतीय परिवेश में ईस्ट इंडिया कंपनी के षड़यंत्रों का कुचक्र प्रारंभ हो चुका था । और पूर्ववर्ती सूबेदार की अकुशल नक्ति से कमजोर झांसी को गंगाधर राव ने कुशल लोकप्रिय नेतृत्व प्रदान किया । किंतु उनकी असमायिक मृत्यु और संतान हीनता की स्थिति को अंग्रेजो ने राज्य हडपने का सुअवसर समझा । किंतु विश्व प्रसिद्ध वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई ने इसका विरोध करते हुये आंग्रेजों से युद्ध करते हुये वीर गति प्राप्त की । इसके पश्चात यह इलाका ग्वालियर रियासत के अंदर जीवाजी राव को संचालन हेतु अंग्रेजों ने सुपुर्द कर दिया । झांसी को बुंदेलखण्ड का प्रवेश द्वार भी कहते है ।
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