रानी दुर्गावती कालिजंर महाराज कीर्तिराय चंदेल की पुत्री थी । इनका जन्म 5 अक्टूबर 1524 को हुआ  था। उनकी एकमात्र सतान होने के कारण इनकी शिक्षा – दीक्षा एक राजकुमार के समान ही हुआ । इनका विवाह दलपति राय से हुआ था । दलपति राय ने जाति अभिमान से प्रेरित कीर्तिराय को पराजित कर रानी दुर्गावती से प्रेम विवाह किया । विवाह के वर्षोपरांत उन्हें पुत्र  प्राप्ति हुयी  कितु दलपति राय की एक असाध्य बीमारी से मृत्यु हो गयी । पुत्र नारायण कुवर  को सिंहासनासीन कर दुर्गावती सफल राज्य संचालन प्रारंभ कर दिया । महिला शासित राज्य को  विजय करना सहज मानकर माण्डू शासक बाजवहादुर ने आक्रमण कर दिया रानी दुर्गावती  ने उसे बुरी तरह पराजित किया इसके पश्चात किसी पडोसी शासक का हमला करने का साहस न हुआ । कितु अकबर की नीयत इस  राज्य को हडपने की थी । कड़ा के सूबेदार आसफ खां की से उसने पूरी तैयारी की और समय  आने पर युद्ध के बहाने के लिये योग्य सरदार आधार सिंह की मांग की । रानी की अनिच्छा होने पर भी सरदार दिल्ली दरबार में पहुंचे । जव अकबर उसे साम दाम दंड भेद से न झुका सका  तो उसे गिरफ्तार करके गढमडला की रियासत पर 1562 में आक्रमण कर दिया । इस युद्ध में बदन सिंह  के विश्वासघात करने के बाबजूद रानी  दुर्गावती ने आसफ खाँ को बुरी तरह हराया  ।  तोपखाने के अभाव मे  यह विजय महत्वपूर्ण थी। दूसरे युद्ध मे भी रानी के रण कौशल के आगे आसज  की एक न चली और एक बार फिर आसफ खां ने मुंह की खायी । तत्पश्चात विजयोत्सव मनाती सेना पर राज्य के गद्दारों के कारण यह सूचना आसफ खा को मिली उसने आक्रमण किया रानी के उत्साह बढाने हेतु राजा वीर नारायण को सौपें गये संचालन को सरदारो  अपने प्रतिष्ठा पर आघात मान पूर्ण शक्ति से युद्ध नही किया और  आसफ खाँ की सेना किले में प्रवेश करने लगी । वीर नारायण को वीरगति पाते देख कर रानी  दुर्गावती अपनी पूरी शक्ति से युद्ध  और तीर से घायल हो गयी  रानी ने स्वयं को शत्रु से घिरा  कर  स्वय को कटार मार कर  जीवन  पूर्ण की । किंतु   वीरता के इतिहास में अमर हो गयी ।

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