विंध्याचल पर्वत माला की तराई क्षेत्र में स्थित आर्य संस्कृति के पुण्य क्षेत्र के रूप में जाना जाने वाला भूभाग बुंदेलखंड कहा जाता है आदिकाल से ही इस धरती को वीर प्रसूता होने का सौभाग्य प्राप्त रहा है प्रस्तुत श्रंखला उस गौरवशाली स्वर्णिम अतीत के बिंदु मात्र है
- ऋग्वैदिक काल में दक्षिणी तट पर वसु या कसु चैद्य जो कि चेदि वंश का दानशील राजा था इसका उल्लेख प्राप्त होता है
- वैदिक कालीन यजुर्वेदीय कर्मकांड का प्रारम्भ होने से हम बुंदेलखंड को यजुहोती के नाम से जाना जाता था।
- रामायण काल में बुंदेलखंड का उल्लेख दण्डकारण्य क्षेत्र के रूप में होता है चित्रकूट एवं कालिंजर इसके प्रमुख स्थान थे
- महाभारत काल में राजा शिशुपाल तथा दन्तवक्र नामक शासको का प्रमाण है ।
- द्वापर काल में शुक्तिमती को चेदी प्रदेश की राजधानी कहा गया है ।
- जेजा (जय शक्ति ) कन्नौज राज्य के प्रभावशाली सामंत के नाम पर इसका नाम जैजार्कभुक्ति हुआ ।
- पुराणों के काल में इसे मध्य देश भी कहा गया है
- गुप्त काल में बुंदेलखंड में वाकाटक साम्राज्य था
- दस नदियाँ प्रवाहित होने के कारण इस प्रदेश को दशार्ण भूमि भी कहा जाता था
- ब्रिटिश शासन में इस क्षेत्र को सेंट्रल इंडिया के नाम से जानते थे
- भौगोलिक दृष्टि से बुंदेलखंड का उत्तरी अक्षांश २३0 -२४0 अंश और पूर्वी देशांतर ७७0 -५२0 व् ८०0 अंश के मध्य स्थित है
- कुछ विद्वान इसे पुलिंद जाति का प्रदेश होने से अपभृंश रूप में बुंदेलखंड हुआ मानते है (भाषाशास्त्रीय आधार पर )।
- इतिहासकार जयचंद विद्द्यालंकार के अनुसार चेदि राज्य के वंशज कालांतर में चंदेल कहलाये
- गहरवार वंश के हेमकर्ण पंचम ने विन्ध्वासिनी माँ को रक्त बुँदे अर्पित कर राज्य का वर मिला इससे प्रदेश का नाम बुंदेलखंड हुआ ( लालकवि , छत्रप्रकाश )
- अरुण राजस्य पौत्रेण श्री सोमेश्वर सुनुना
- जेजाकभुक्ति देवोअयम प्रथ्विराजेन लुनिता
- ( परिमर्दि चंदेल से पृथ्वीराज युद्ध का काल-मदनपुर शिलालेख )