सम्पूर्ण इतिहास में महिला शक्ति का प्रतिमान मानी जाने वाली रानी झाँसी के वंशजों को वर्तमान मे ” झांसी वाले” के उपनाम से जाना जाता है। इसे विधि का विधान ही कहिये कि जिस रानी झांसी को हम शौर्य प्रतीक मानकर सर ऑखो पर बैठाते हैं । उन्हीं के वंशज आज सम्पूर्ण राष्ट्रीय में अपनी पहचान के मोहताज है। इस उपनाम की परम्परा का प्रारम्भ दामोदर राव जी से हुआ । जी हां, यह वही बालक था जिसे आपने युद्ध करती वीरांगना की पीठ पर वधां हुआ देखा था । रानी के महाप्रयाण के पश्चात वह छोटा बालक नियति की पहेली बनकर रह गया। युद्ध में रानी की वीरगति प्राप्ति पश्चात चंदेरी के जंगलो मे कुछ समय बिताने के पश्चात एक समय एसा भी आया कि रानी की आखिरी निशानी सोने के तोडे भी जीवन यापन हेतु बेचने पड़े। किसी प्रकार एक अंग्रेज अफसर मिस्टर फिल्कं के निवेदन पर 10 साल के बालक को पेंशन देना सुनिश्चित हुआ । और 5 मई1860 को दस हजार रुपये सालाना की पेंशन वांधी गयी । वह एक अच्छे चित्रकार थे। उनके द्वारा बनायी गयी रानी लक्ष्मी बाई की पेंटिंग अमूल्य कलाकृति है। आज भी इनके वंशज इन्दौर मे मध्यम वर्गीय परिवार की तरह जीवन व्यतीत कर रहे है।
Related Posts
जिला पंचायत अध्यक्ष
- bundelipedia
- October 16, 2024
- 3 min read
- 0
बुंदेलखंड उत्तर प्रदेश – जिला – जिला पंचायत अध्यक्ष […]
तेंदूखेड़ा (Tendukheda)
- bundelipedia
- February 14, 2023
- 0 min read
- 0
दमोह जिले की यह तहसील मुख्यालय से करीब 75 कि.मी. […]
मऊरानीपुर (Mauranipur)
- bundelipedia
- December 1, 2022
- 0 min read
- 0
भारत की सबसे बड़ी तहसील के रूप में विख्यात मउरानीपुर […]