सम्पूर्ण विश्व में जब वीरता के प्रतिमानों का उदाहरण दिया जाता है तो उसमें नारी शक्ति के क्षेत्र में रानी लक्ष्मी बाई अद्धितीय हैं । अंग्रेजों से हुये संघर्ष में उन्होंने अदभुत पराक्रम का प्रदर्शन किया। बचपन से इन्हें लोग मनु और छबीली के नाम से पुकारते थे। इनका जन्म काशी में हुआ था । इनके पिता जी का नाम मोरोपन्त ताबें था । इनकी माता जी की मृत्यु इनके बाल्यकाल में ही हो गयी थी। किन्तु इनकी शिक्षा – दीक्षा मे किसी प्रकार की कमी न होने पायी । मनु सभी प्रकार के शस्त्र अस्त्र संचालन में पारंगत थी। अश्व संचालन एवं सैन्य नेतृत्व की भी उनमें पूर्ण दक्षता थी। उनका विवाह झासी नरेश गंगाधर राव से हुआ। गंगाधर राव एक कुशल प्रशासक थे किन्तु संतान न होने के कारण राज्य उत्तराधिकारी का प्रश्न एक गहन चिंता का कारण बन गया था। इस समस्या के समाधान हेतु गंगाधर ने एक बालक को गोद लिया जिसका नाम दामोदर राव रखा गया। कुछ समयोपरांत राजा गंगाधर राव का देहावसान हो गया। अंग्रेजो की नजर इस राज्य पर पहले से ही थी। उन्होंने अपनी षड्यंत्र कारी राज्य हड़प नीति के तहत झांसी के राज्य को अधिग्रहण करने का प्रयास किया। इसके लिये उन्होंने अपने कोर्ट में मनमानी दलीलो के आधार पर रानी को राज्य से बेदखल कर दिया । रानी भी इतनी सरलता से हार मान जाने वाली मिट्टी की नहीं बनी थी। रानी लक्ष्मी बाई ने अपनी एक सेना का संगठन करना प्रारभं किया। ओरक्षा एवं दतिया नरेशों के आक्रमण का सफलता पूर्वक सामना कर उन्हे पराजित किया। इसके पश्चात उन्हें तात्या टोपे की सहायता प्राप्त हुयी। किन्तु तब तक अंग्रेजो की सेना ने इन्हें घेर लिया था । नारी शक्ति द्वारा लडे गये इस भीषड़तम युद्ध में ग्वालियर में नाला पार करते समय सर पर वार होने से वीर गति को प्राप्त हुयी। दौ सौ वर्ष बाद भी पीठ में बच्चा बांधे दोनों हाथ से तलवार चलाती हुयी रानी लक्ष्मी बाई की चित्र स्मृति आज भी हम बुंदेलखण्ड निवासीयों को अश्रुपूरित रोमांच से भर देती है

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