चर्तुमठ परम्परा

आइये जानते हैं चर्तुमठ परम्परा के बारे में

आदि शंकराचार्य ने देश की चारों दिशाओं में चार मठ की स्थापना की थी,वे क्यों बनाये गये आइये जानते हैं ।

यह मठ चार वेदों की पीठें हैं । ताकि सम्पूर्ण भारत में वेद की ऋचाएँ गूंजती रहें ।इसीलिए इनकी स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी ।

श्रृंगेरी मठ: श्रृंगेरी शारदा पीठ भारत के दक्षिण में रामेश्वरम् में स्थित है. इस मठ का वेद ‘यजुर्वेद’ है इसके तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद सरस्वती, भारती, पुरी सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है. इस मठ का महावाक्य ‘अहं ब्रह्मास्मि’ है,. इसके पहले मठाधीश आचार्य सुरेश्वर थे।

गोवर्धन मठ: गोवर्धन मठ उड़ीसा के पुरी में है. इस मठ का वेद ‘ऋग्वेद’
है। गोवर्द्धन मठ के तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद ‘आरण्य’ सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है. इस मठ का महावाक्य है ‘प्रज्ञानं ब्रह्म’

शारदा मठ: द्वारका मठ को शारदा मठ गुजरात में द्वारकाधाम में है. इसके तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद ‘तीर्थ’ और ‘आश्रम’ सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है इस मठ का महावाक्य है ‘तत्त्वमसि’ और इसमें ‘सामवेद’ को रखा गया है।

ज्योतिर्मठ: ज्योतिर्मठ उत्तराखण्ड के बद्रिकाश्रम में है. ज्योतिर्मठ के तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद ‘गिरि’, ‘पर्वत’ और ‘सागर’ सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है. इसका महावाक्य ‘अयमात्मा ब्रह्म’ है. मठ के अंतर्गत अथर्ववेद को रखा गया है।

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